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छत्तीसगढ़

मां चंद्रहासिनी के दर्शन से संतान प्राप्ति की बड़ी मान्यता, छग के अलावा अन्य प्रदेशों से पहुंचते हैं श्रद्धालु, 52 शक्ति पीठों में से एक हैं माता..

सक्ती जिले के चंद्रपुर में विराजित 52 शक्ति पीठों में से एक मां चंद्रहासिनी मंदिर में नवरात्रि की धूम हैं. मां चंद्रहासिनी मंदिर छतीसगढ़ के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है और माता संतान दायनी हैं. प्रत्येक दिन यहां हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है और माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. यहां 11 हजार 6 सौ दीप प्रज्वलित कराई गई है. सबसे खास बात यह भी है कि यहां सक्ती क्षेत्र से हजारों श्रद्धालु पदयात्रा करते माता के दर्शन के लिए पहुंचे, इस दौरान उनमें खासा उत्साह दिखा.

 

महानदी के किनारे और पहाड़ की चोटी पर विराजित मां चंद्रहासिनी के दर्शन से संतान प्राप्ति की बड़ी मान्यता भी है, जिसके चलते छग के अलावा अन्य प्रदेशों से श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आतुर रहते हैं. वहीं महिलाओं की सबसे ज्यादा भीड़ रहती है. मां चंद्रहासिनी, 52 शक्तिपीठों में से एक है. माता के दर्शन के लिए श्रद्धालु नंगे पांव और कर नापते दरबार में पहुंचते हैं और मां की विशेष कृपा अर्जित करते हैं. मंदिर परिसर में बने विशाल 100 फिट का अर्धनारीश्वर मूर्ति, वीर बजरंग बली, कृष्णपौराणिक और धार्मिक कथाओं की सुंदर झाकियां बनी हुई है. जो आकर्षण का केंद्र रहता है. यहां कृष्ण लीला, चिरहरण, महिषासुर वध, चार धाम, नवग्रह, सर्वधर्म सभा, शेषनाग बिस्तर और अन्य देवी-देवताओं की भव्य मूर्तियाँ दिखाई देती है. इसके अलावा, शीश महल, तारा मण्डल, मंदिर के मैदान पर एक चलती हुई झांकी महाभारत काल को जीवंत तरीके से दर्शाती है. जिससे श्रद्धालुओं को महाभारत के पात्रों और कथानक के बारे में जानने को मिलता है. वहीं माता चंद्रहासिनी की चंद्रमा के आकार की मूर्ति के दर्शन मात्र से ही भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है. सिद्ध शक्तिपीठ मां चंद्रहासिनी देवी मंदिर चंद्रपुर में नवरात्रि में प्रत्येक दिन महाआरती के साथ 108 दीपों की पूजा की जाती है. अभी फिलहाल, चारों ओर से प्राकृतिक मनमोहक सुंदरता से घिरे चंद्रपुर की खूबसूरती देखने लायक है. पहले यहां बलि प्रथा का प्रचलन था, लेकिन समय के साथ इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.

चंद्रमा के आकार की विशेषताओं के कारण माता को चंद्रहासिनी और चंद्रसेनी मां के नाम से जाना जाता है. बताया जाता है कि चंद्रसेनी देवी ने सरगुजा को छोड़ दिया और उदयपुर और रायगढ़ होते हुए महानदी के किनारे चंद्रपुर की यात्रा की. महानदी की पवित्र शीतल धारा से प्रभावित होकर माता रानी विश्राम करने लगीं. इसके बाद उन्हें नींद आ गई. वर्षों व्यतीत हो जाने पर भी उनकी नींद नहीं खुली. एक बार संबलपुर के राजा की सवारी यहां से गुजरी. चंद्रसेनी देवी पर गलती से उनके पैर लग जाने से चोट लग गई, जिससे वे जाग गए. फिर एक दिन देवी ने उन्हें एक सपने में दर्शन दिए और उन्हें एक मंदिर बनाने और वहां एक मूर्ति स्थापित करने के लिए कहा. जिसके बाद से निरंतर पूजा अर्चना की जा रही है, माता लाखों श्रद्धलुओं के लिए आस्था का केंद्र है.

 

आपको बता दें कि माता चंद्रहासिनी की छोटी बहन के रूप में माता नाथलदाई को माना जाता है. नाथल दाई महानदी के बीच टापू पर स्थित है, जो बाढ़ में भी अछूता रहता है और माना जाता है कि वह मां सरस्वती से प्रकट हुईं हैं और ज्ञान व सुख प्रदान करती हैं. सबसे बड़ी बात माता चंद्रहासिनी के दर्शन के बाद माता नाथल दाई के दर्शन से दर्शन पूर्ण माना जाता है. यह मंदिर छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक और धार्मिक आस्था का एक प्रमुख केंद्र है, जहाँ भक्त देवी से आशीर्वाद लेने आते हैं.

 

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